Tuesday 29 December 2015

ज़िना क्या है ? ( Zina kiya hai? )

🅾सवाल : ज़िना क्या है ?

🅾जवाब :अगर मर्द एक ऐसी औरत से सोहबत/ हमबिस्तरी करे जो उसकी बीवी नही है तो, ये ज़िना कहलाता है, ज़रूरी नही की साथ सोने को ही ज़िना कहते हैं, बल्की छूना भी ज़िना एक हिस्सा है और किसी पराई औरत को देखना आँखों का ज़िना है।

🅾ज़िना को इस्लाम में एक बहुत बड़ा गुनाह माना गया है, और इस्लाम ने ऐसा करने वालो की सज़ा दुनिया में ही रखी है. और मरने के बाद अल्लाह इसकी सख्त सज़ा देगा।

🅾ज़िना के बारे में कुछ हदीस और क़ुरान की आयत देखिये।हज़रत मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फ़रमाया मोमिन (मुस्लिम) होते हुए तो कोई ज़िना कर ही नही सकता।(Bukhari Sharif, Jild:3, Safa:614 Hadees:1714)

🅾अल्लाह क़ुरान में फ़रमाता है और (देखो) ज़िना के पास भी ना जाना, बेशक वो बेहयाई है और बुरी राह है"(Al-quraan : Al-Isra: A-32)

🅾ज़िना की सज़ा और अज़ाब: अगर ज़िना करनेवाले शादी शुदा हो तो खुले मैदान में पत्थर मारमार कर मार डाला जाये और अगर कुंवारे हो तो 100 कोड़े मारे जाये।(Bukhari Sharif Jild Safa:615/615 Hadees:1715)

🅾आज कल देखने में आया है की इस गुनाह में बहोत से लोग शामिल हैं, खास करके उस बाज़ार मे जहां औरते और मर्द जाते है किसका हाथ किसको लग रहा हे कहा लग रहा हे कुछ मालुम नही होता, चाहे लड़का हो या लड़की.और फिर इस गुनाह को करने के बाद अपने दोस्तों को बड़ी शान से सुनाते हैं, बल्कि उनको भी ऐसा करने की राय देते हैं।

🅾अगर कोई कुंवारा लड़का या लड़की कोई ग़लत काम करता है तो इसका गुनाह इसके माँ बाप को भी मिलता है क्योंकी उन्होंने उनकी जल्दी शादी नही की जिसकी वजह से वो गलत काम करने लगे,

🅾और एक जगह अल्लाह ने क़ुरान में फ़रमाया की पाक दामन लड़कियां, पाक दामन लड़को के लिए हैं,

🅾इसका मतलब यह है की अगर आप अच्छी हैं तो अल्लाह आपको भी अच्छी बीवी या दूल्हा देगा और ख़राब हैं तो समझ लीजिये।

🅾इंसान जो भी ग़लत काम करता है उसकी क़ीमत उसके बच्चो, माँ या बहन को इस दुनिया में ही चुकानी पड़ती है,

🅾इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह कहते हैं के ज़िना एक क़र्ज़ है, अगर तू यह क़र्ज़ लेगा तो तेरे घर से यानी तेरी बहन बहु बेटी से वसूल किया जायेगा।

🅾दोस्तों इस कबीरा गुनाह की और भी सज़ायें हैं, इसलिए खुद भी बचो और अपने दोस्तों को भी बचाओ,

🅾अगर आपने अपने सेक्स का क़िस्सा अपने दोस्त/सहेली को सुनाया और उसके दिल में भी ऐसा करने की बात आ गई और उसने वो काम कर लिया तो उसका गुनाह आपको भी मिलेगा, क्योंकि आपने ही उसको ग़लत रास्ता दिखाया है.और आपके दोस्त आगे भी जितने लोगो को ग़लत रास्ता दिखायेंगे उन सबका गुनाह आपकेखाते में आएगा।

🅾सबके घर मे बहु, बहन, बेटी, माँ हैं, अगर आप दूसरे की तरफ तांक झांक करोगे तो आपका घर भी महफूज़ नही रहेगा,

🅾अल्लाह हम सबको इस बड़े गुनाह से बचाए।

🅾आज आप यह मेसेज अगर किसी 1 को भी शेयर करदें तो आप सोच भी नही सकते कितने लोग"अल्लाह" से तौबा कर लेंगे

🅾इंशा अल्लाह.हदीस :-जब तुम अपने बिस्तर पर जाओ तो सुराः फ़ातिह और सूरह इखलास को पढ़ लिया करो, तो मौत के अलावा हर चीज़ से बेखौफ हो जाओगे.

🅾वह दिन क़रीब है जब आसमान पे सिर्फ एक सिताराहोगा.

🅾 तौबा का दरवाज़ा बंद कर दिया जायेगा.

🅾क़ुरआन के हरूफ मिट जायेंगे ,

🅾सूरज ज़मीन के बिलकुल पास आ जायेगा.,

🅾हुज़ूर सलल्लाहू अलैह वसल्लम ने फ़रमाया "बे नूर हो जाये उसका चेहरा जो कोई मेरी हदीस को सुन कर आगे न पोहचाए.

Tuesday 20 October 2015

Moharram Ke Tajiye Haram Ya Halal ???

-: मुहर्रम :-
कैसे हुई ताजियों की शुरुआत
ताजियों की परंपरा.....
मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है,
यह सिर्फ इस्लामी हिजरी सन्
का पहला महीना है।
पूरी इस्लामी दुनिया में मुहर्रम की नौ और दस तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में
इबादत की जाती है।
क्यूंकि ये तारिख इस्लामी इतिहास कि बहुत खास तारिख है.....रहा सवाल भारत में ताजियादारी का तो यह एक शुद्ध भारतीय परंपरा है, जिसका इस्लाम से कोई ताल्लुक़
नहीं है।
इसकी शुरुआत बरसों पहले तैमूर लंग बादशाह ने की थी,
जिसका ताल्लुक ‍शीआ संप्रदाय से था।
तब से भारत के शीआ - सुन्नी और कुछ क्षेत्रों में हिन्दू भी ताजियों (इमाम हुसैन की कब्र
की प्रतिकृति, जो इराक के कर्बला नामक स्थान पर है)
की परंपरा को मानते या मनाते आ रहे हैं।
भारत में ताजिए के इतिहास और बादशाह तैमूर लंग का गहरा रिश्ता है।
तैमूर बरला वंश का तुर्की योद्धा था और (विश्व विजय) दुनियां फ़तह करना उसका सपना था।
सन् 1336 को समरकंद के
नजदीक केश गांव ट्रांस ऑक्सानिया (अब उज्बेकिस्तान) में जन्मे तैमूर को चंगेज खां के पुत्र चुगताई ने प्रशिक्षण दिया।
सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में ही वह चुगताई तुर्कों का सरदार बन
गया।
फारस, अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया और रूस के कुछ
भागों को जीतते हुए तैमूर भारत (1398) पहुंचा। उसके साथ 98000 सैनिक भी भारत आए।
दिल्ली में मेहमूद तुगलक से युद्ध
कर अपना ठिकाना बनाया और यहीं उसने स्वयं को सम्राट
घोषित किया।
तैमूर लंग तुर्की शब्द है, जिसका अर्थ तैमूर लंगड़ा होता है। वह दाएं हाथ और दाए पांव से पंगु था।
तैमूर लंग शीआ संप्रदाय से था और मुहर्रम माह में हर साल
इराक जरूर जाता था,
लेकिन बीमारी के कारण एक साल नहीं जा पाया।
वह हृदय रोगी था,
इसलिए हकीमों, वैद्यों ने उसे
सफर के लिए मना किया था।
बादशाह सलामत को खुश करने के लिए दरबारियों ने ऐसा करना चाहा, जिससे तैमूर खुश हो जाए।
उस जमाने के
कलाकारों को इकट्ठा कर उन्हें इराक के कर्बला में बने इमाम
हुसैन के रोजे (कब्र) की प्रतिकृति बनाने का आदेश दिया।
कुछ कलाकारों ने बांस की किमचियों की मदद से 'कब्र' या इमाम हुसैन की यादगार का ढांचा तैयार किया। इसे तरह-तरह के
फूलों से सजाया गया।
इसी को ताजिया नाम दिया गया। इस ताजिए को पहली बार 801 हिजरी में तैमूर लंग के महल परिसर में रखा गया।
तैमूर के ताजिए की धूम बहुत जल्द पूरे देश में मच गई।
देशभर से राजे-रजवाड़े और श्रद्धालु जनता इन ताजियों की जियारत (दर्शन) के लिए पहुंचने लगे।
तैमूर लंग को खुश करने के लिए देश की अन्य रियासतों में भी इस परंपरा की सख्ती के साथ शुरुआत हो गई।
खासतौर पर दिल्ली के आसपास के जो शीआ संप्रदाय के नवाब
थे, उन्होंने तुरंत इस परंपरा पर अमल शुरू कर दिया तब से लेकर आज तक इस अनूठी परंपरा को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा (म्यांमार) में मनाया जा रहा है।
जबकि खुद तैमूर लंग के देश उज्बेकिस्तान या कजाकिस्तान में
या शीआ बहुल देश ईरान में ताजियों की परंपरा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
68 वर्षीय तैमूर अपनी शुरू की गई ताजियों की परंपरा को ज्यादा देख नहीं पाया और गंभीर बीमारी में मुब्तिला होने के कारण 1404 में समरकंद लौट गया।
बीमारी के बावजूद उसने चीन अभियान की तैयारियां शुरू कीं, लेकिन 19 फरवरी 1405 को ओटरार चिमकेंट के पास
(अब शिमकेंट, कजाकिस्तान) में तैमूर का इंतकाल (निधन) हो गया। लेकिन तैमूर के जाने के बाद भी भारत में यह परंपरा जारी रही।
तुगलक-तैमूर वंश के बाद मुगलों ने भी इस परंपरा को जारी रखा।
मुगल बादशाह हुमायूं ने सन् नौ हिजरी 962 में बैरम खां से 46
तौला के जमुर्रद
(पन्ना/हरित मणि)
का बना ताजिया मंगवाया था।
कुल मिलकर ताज़िया का इस्लाम से कोई ताल्लुक़ ही नही है....लेकिन हमारे भाई बेहनो को इल्म नहीं है और इस वजह से इस काम को सवाब समझ कर करते है उन्हें हक़ीक़त
बताना भी हम सब का काम है......
ताज़िया हराम है,
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लोग ताजिया बनाकर अहले सुन्नत को बदनाम करते हैं...
जबकि अहले सुन्नत के उलमा भी ताजिये को मना करते है..
ताजिया दारी हराम है, हराम है, हराम है,
कुरान फरमाता है: "और उन लोगों से दूर रहो जिन्होंने
अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया."
(पारा: ७)
हदीस में है: जो (मैय्यत के ग़म में) गाल पीटे, गरीबन फाड़े,
और चीख व पुकार मचाये वो हम में से नहीं"
(बुखारी)
रसूलअल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया
मेरी उम्मत में ऐसे लोग भी होंगे
जो ढोल बाजो को
हलाल (जाइज़) कर देंगे
(बुखारी)
उलमा ए अहले सुन्नत:
फतवे: मुहर्रम में जो ताजियादारी होती है गुम्बद नुमा ताजिया
बनाये जाते है ये नाजायेज़ है
(फतावा अजीजिया)
आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान
फरमाते है:
ताजिया बिदअत, नाजायेज़ व हराम है
(फतवा रजविया)
मुफ्तिये आज़म ए हिन्द, मौलाना मुस्फाता रज़ा खान:
ताज़ियादारी शर'अन नाजायेज़ है
(फतावा मुस्ताफ्विया)
मुफ़्ती मुहम्मद अमज़द अली आज़मी:
ये वाकिया तुम्हारे लिए नसीहत था
तुमने इसे खेल तमाशा बना लिया,
(बहारे शरीअत)
ताजिया बनाना, बाजे ताशे के साथ उठाना, इस की ज्यारत करना, अदब करना,
ताज़ीम करना, सलाम करना,
चूमना, बच्चो को दिखाना,
हरे कपडे पहनना,
फकीर बनाना,
भिक मंगवाना, ये सब नाजायेज़ व गुनाह है
(शमा ए हिदायत)
मुफ़्ती जलालुद्दीन साहब:
हिंदुस्तान में जिस तरह आम तौर में
ताजियों का रिवाज़ है,
बेशक हराम नाजायेज़ व बिद'अत है,
(फतवा फैज़ुर्रुसूल)
ये सारे हवाले अहले सुन्नत की
किताबो में से है,
कहीं भी ये नहीं पाया गया की
सुन्नी आलिमो ने ताजिये को जायेज़ कहा,
लोग बिलावजह नाम बदनाम करते हैं,

अल्लाह का फरमान है “ किसी ऐसी चीज की पैरवी ना करो {यानि उसके पीछे न चलो, उसकी इत्तेबा ना करो } जिसका तुम्हें इल्म ना हो, यकीनन तुम्हारे कान, आँख, दिमाग {की कुव्वत जो अल्लाह ने तुमको अता की है } इसके बारे में तुमसे पूछताछ की जाएगी”
{सूरह बनी इस्राईल 17, आयत 36}

और नबी सल्ल० ने फ़रमाया “इल्म सीखना हर मुसलमान मर्द-औरत पर फ़र्ज़ है”
{इब्ने माजा हदीस न० 224 }
यानि इतना इल्म जरुर हो कि क्या चीज शरियत में हलाल है क्या हराम और क्या अल्लाह को पसंद है क्या नापसंद, कौन से काम करना है और कौन से काम मना है और कौन से ऐसे काम है जिनको करने पर माफ़ी नहीं मिल सकती |
अब लोगों का क्या हाल है एक तरफ तो अपने आपको मुसलमान भी कहते है दूसरी तरफ काम इस्लाम के खिलाफ़ करते है और जब कोई उनको रोके तो उसको कहते है कि ये काम तो हम बाप दादा के ज़माने से कर रहे है,
यही वो बात है जिसको अल्लाह ने कुरआन में भी बता दिया सूरह बकरा की आयत 170 में “और जब कहा जाये उनसे की पैरवी करो उसकी जो अल्लाह ने बताया है तो जवाब में कहते है कि हम तो चलेंगे उसी राह जिस पर हमारे बाप दादा चले, अगर उनके बाप दादा बेअक्ल हो और बेराह हो तब भी {यानि दीन की समझ बूझ ना हो तब भी उनके नक्शेकदम पर चलेंगे ? }
हक़ीकत खुराफ़ात में खो गई
जी हाँ मुहर्रम की भी हकीकत खुराफ़ात में खो गई उलमाओं के फतवे और अहले हक़ लोगों के बयान मौजूद है फिर भी मुहर्रम की खुराफ़ात पर लोग यही दलील देते है कि यह काम हम बाप दादों के ज़माने से करते आ रहे है ? बेशक करते होंगे लेकिन कौन से इल्म की रौशनी में ? जाहिर है वो इल्म नहीं बेईल्मी होगी क्योंकि इल्म तो इस काम को मना कर रहा है
आप खुद पढ़े
हजरत अब्दुल कादिर जीलानी का फ़तवा
अगर इमाम हुसैन रज़ि० की शहादत के दिन को ग़म का दिन मान लिया जाए तो पीर का दिन उससे भी ज्यादा ग़म करने का दिन हुआ क्यंकि रसूले खुदा सल्ल० की वफात उसी दिन हुई है | {हवाला : गुन्यतुत्तालिबीन, पेज 454}
शाह अब्दुल मुहद्दिस देहलवी का फ़तवा
मुहर्रम में ताजिया बनाना और बनावटी कब्रें बनाना, उन पर मन्नतें चढ़ाना और रबीउस्सानी, मेहंदी, रौशनी करना और उस पर मन्नतें चढ़ाना शिर्क है |
{हवाला : फतावा अज़ीज़िया हिस्सा 1, पेज 147}
हज़रत अशरफ़ अली थानवी साहब का फ़तवा
ताजिये की ताजीम करना, उस पर चढ़ावा चढ़ाना, उस पर अर्जियां लटकाना, मर्सिया पढना, रोना चिल्लाना, सोग और मातम करना अपने बच्चों को फ़क़ीर बनाना ये सब बातें बिदअत और गुनाह की है | {हवाला : बहिश्ती ज़ेवर, हिस्सा 6, पेज 450 }
हज़रत अहमद रज़ा खां साहब बरेलवी का फ़तवा
1. अलम, ताजिया, अबरीक, मेहंदी, जैसे तरीके जारी करना बिदअत है, बिदअत से इस्लाम की शान नहीं बढती, ताजिया को हाजत पूरी करने वाला मानना जहालत है, उसकी मन्नत मानना बेवकूफी,और ना करने पर नुकसान होगा ऐसा समझना वहम है, मुसलमानों को ऐसी हरकत से बचना चाहिये |
{हवाला : रिसाला मुहर्रम व ताजियादारी, पेज 59}
2. ताजिया आता देख मुहं मोड़ ले, उसकी तरफ देखना भी नहीं चाहिये
{हवाला : इर्फाने शरियत, पहला भाग पेज 15}
3. ताजिये पर चढ़ा हुआ खाना न खाये, अगर नियाज़ देकर चढ़ाये या चढ़ाकर नियाज़ दे तो भी उस खाने को ना खाए उससे परहेज करे
{हवाला : पत्रिका ताजियादारी,पेज 11}
मसला : किसी ने पूछा हज़रत क्या फरमाते है इन के बारे में
१. कुछ लोग मुहर्रम के दिनों में न तो दिन भर रोटी पकाते है और न झाड़ू देते है, कहते है दफ़न के बाद रोटी पकाई जाएगी |
२. मुहर्रम के दस दिन तक कपड़े नहीं उतारते
३. माहे मुहर्रम में शादी नहीं करते |
जवाब : तीनों बातें सोग की है और सोग हराम है
{हवाला : अहकामे शरियत,पहला भाग, पेज 171}
हज़रत मुहम्मद इरफ़ान रिज्वी साहिब बरेलवी का फ़तवा
ताजिया बनाना और उस पर फूल हार चढ़ाना वगेरह सब नाजायज और हराम है |
{हवाला :इर्फाने हिदायत, पेज 9}
हज़रत अमजद अली रिज्वी साहिब बरेलवी का फ़तवा
अलम और ताजिया बनाने और पीक बनने और मुहर्रम में बच्चों को फ़क़ीर बनाना बद्दी पहनाना और मर्सिये की मज्लिस करना और ताजियों पर नियाज़ दिलाने वगैरह खुराफ़ात है उसकी मन्नत सख्त जहालत है ऐसी मन्नत अगर मानी हो तो पूरी ना करे
{ हवाला : बहारे शरियत, हिस्सा 9, पेज 35, मन्नत का बयान}
ताजियादारी हज़रत अहमद रज़ा खां साहब बरेलवी की नज़र में
ये ममनूअ है, शरीयत में इसकी कुछ असल नहीं और जो कुछ बिदअत इसके साथ की जाती है सख्त नाजायज है, ताजियादारी में ढोल बजाना हराम है |
{हवाला : फतावा रिजविया, पेज 189, जिल्द 1, बहवाला खुताबते मुहर्रम}

Wednesday 8 July 2015

Akhirat Ka Manzar

The finel destination ( Akhirat me dekha jayega ): http://youtu.be/8sNpfise2rE